Wednesday, April 10, 2019

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      लेखक : प्रान्शु वर्मा                                    


गीत    

Time Circle Noble                                                                  
   ( 1 )

तु कहती है की मै बहारो मे आऊ
हँसु संग तेरे मै नगमे सुनाऊ
मुझे फिक्र है इस हसी जिन्दगी की
मोहब्बत की गलियों मे कैसे गँवाऊ
ये शाहिल,ये झरने, ये हसतें बगीचे
तेरी आँखे मुझको है हर पल बुलाती
बता तु ही कैसे मै महफिल मे आऊ
मोहब्बत की खामोशियों को लुटाऊ
भरोसा है तेरे भी वादों पे मुझको
बेवफा गुजरी शामों को कैसे भुलाऊ




                                                                                              ( 2 )

 देखु तुझे छिप जाती है
बाते जो मुझसे बनाती है
बोलु तो तु घबराता है
मुझसे ही क्यो शरमाता है
तेरी नजर मे जादु है
मुझको समझ नही आता है
अच्छा तो कह ओ दिवाने
तुझको क्या-क्या भा जाता है
तुझसे हसी हो ऐसा कुछ
मुझको पसंद ना आता है
अच्छा ओ झुठे अनजाने
बाते तु कितनी बनाता है
तु ही बता तो सच क्या है
आखिर इरादा तेरा क्या है
मुझको तो लगता है अच्छा तु
तुझ पें मुझे प्यार आता है
सच है यह या मस्ती है
मुझको यकी ना आता है
तु ही बता फिर ये क्या है
दिल धड़कता मन गाता है
प्यार हुआ हम दोनो को
जन्मों-जन्मो का ये नाता है


    ( 3 )

सभी जगह ऐलान मै कर दुँ
तु दिवानी मेरी है,
धत् पगले,तु कुछ ना समझे
छाई तुझको मस्ती है
मस्ती मे मेरी झुम रही तु ,कह
यह बात सही है
झुम रही मै मस्त फिजा मे
तुझको खबर नही है
तुझे फिजा का रंग चढ़ गया
झुठी बहुत बड़ी है
मुश्किल है तुझको समझाना
दशा बहुत बिगड़ी है
वो सब छोड़, देख अपने को
मेरे लिए खड़ी है
हाँ तेरे ही लिए खड़ी मै,प्यार
तुझे करती हुँ
तेरी आशिकी को पाने को
मै हर पल मरती हूँ
हँसी ये हाँल एक दिन
रूह को सुनाऐगी,
मेरी धड़कन तेरे सीने
मे उतर जायेगी,
तड़प उठेगी मेरे सुलगते
अरमानों से,
तेरी चाहत तुझे मेरे करीब
लाऐगी,
खुश्क आँखे आज दर्द
से हुई गीली,
तुझे खामोशियत की याद
ये दिलायेगीं,
मेरी तनहाई भरी जिन्दगी
के वक्त मे,
तेरी मस्ती भी तुझे अश्क
ये पिलायेगीं,
मेरा बेचैंन जिगर मुझसे
कहाँ करता है,
तेरी ये शोखियाँ आखिर
तुझे रूलायेगीं ।







कुछ शेर     

1
मुमकिन है जमाने से भटक जाऊ मै
जमाना हर कदम गुमराह करता फिर रहा
2
तौफीक खुद से जो हुए डर सा गया
पल मे फारिसते रब से कातिल हो गया
3
महफूज हु अबतक सिकस्तों मे मै जो पलता रहा
वरना आफताब तो सितारो को डुबो देता है
4
भरोसे की हिफाजत कह भला अब कौन करता है
करे वादे वफाओ के वफा पे कौन मरता है
5
बड़ी मुद्दत की किस्तों से वो टुकड़ा-ए-दिल जो पाया था
जमाने की बगावत से न जाने किसको मिल गया
6
ख़यालो के जहा से जब मेरी खुली आखे
जाऊ किस तरफ अब तो काफिला भी गुजर गया
7
भटकना भी तो अच्छा है जहा साथी नहीं
रोशनी मे तो साया भी भुला देता है
8
फ़क्र है हमे अपने उस हसीन लम्हे पर
जिस वक़्त तकदीर ने भी हमे ढूकरा दिया
9
चोट खाके जो खुद से मै झगड बैठा
देखा कितने पर्दो का है आसिया मेरा
10
वक़्त की मुस्कुराहट ठहाको मे बदल गई
अपनी असलियत से मैंने पर्दा जो हटा दिया
11
मै तो मुसाफिर बहशी हु ठहरता, चल कही देता
भटकता मै हमेशा से, हसी क्यू, पुछू जो रास्ता
12
मशहूर नहीं गर मै तो मसरूफ़ होना चाहता हु
जिंदा रहे जिससे मेरी मशहुरियत की ख्वाहिशे
13
वो बच्चा एक सिक्के मे खिलौने हर तरह चाहे
ए रब, है सबकुछ तेरा, ले आसू कुछ नहीं देता
14
गुजरना आने से कितना है अहसास संजीदा
ये ठहाके भुला देते है रोना भी पड़ेगा
15
वो पगडंडी थी सकरी जो अब एक रास्ता बन गई
फैलती धूल रही की, अकेला था हुजूमों मे
16
उदासी टूट के ख्बाबों मे कही बह गई
जब से देखी है सिकस्तों की फिजा




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PRANSHU VERMA
PRANSHU VERMA, BC computer science Computer Science World & PHILOSOPHY, Mjpru (2020)





नमस्कार ,

यह मेरा qoura पर पहला उत्तर है । विद्वत जन अनभिज्ञ उत्तर के लिए लिए माफ करे।

देखिए, जहां तक भूतो में विश्वास या अविश्वास की बात है तो मेरा यही मानना है कि यदि आप ईश्वर में विश्वास करते है तो आपको भूतो में भी विश्वास करना चाहिए । ईश्वर या भूत दोनों ही भेाैतिकता से परे है । यदि हम भूतो के बारे में गहराई से सोचे तो निम्न निष्कर्ष निकलता है ।

हिन्दू ग्रंथों में और संस्कृत व्याकरण के अनुसार भूत का शाब्दिक अर्थ किसी मनुष्य से या किसी भी जीव से हो सकता है । भूत सामन्यता किसी प्रकार की चेतना को प्रकट करने की अनुभूति है । आप भी भूत है, आपके पास रह रहे आपके माता पिता सगे संबंधी आदि भी भूत ही है ।

भूत एक चेतन अभिव्यक्ति है जिसका किसी के जीवित या मृत होने से कोई संबंध नहीं है ।आमतौर पर हर व्यक्ति के मन में भूत के प्रति स्वभाव से ही डर पाया जाता है । सच्चे अर्थों में कहा जाए तो इस डर का एकमात्र कारण है खुद के वास्तविक स्वरूप के प्रति हमारा अज्ञान ।
हम खुद को शरीर समझते है इसलिए शरीर की सामर्थ्य से परे हर सत्य से या तो डरते है या रहस्य अथवा कल्पना की वस्तु मानते है ।जिस दिन हम खुद को शरीर न मानकर आत्मा मान लेंगे ,भूतो के वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हमें उसी दिन हो जाएगा । और भूत हमारे लिए डर की नहीं अन्य व्यक्तियों की तरह एक सामान्य चेतन वस्तु बनकर रह जाएगा ।
संक्षेप में भूत होते है और प्रत्येक चराचर प्राणी भूत है ऐसा मानता हूं ।
आशा है आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया है ।
प्रश्न करने के लिए धन्यवाद !

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